BACHCHI





बच्ची
 
बच्ची हूँ पर बची हूँ, में रुढिवादिता के खम्बो से घिरी हुई,
अपने अस्तित्व पे हूँ हैरान, चेतना मेरी बुझी बुझी,


जन्म  से पहले मृत्यु का फरमान, बच्ची हूँ नहीं बेचने का समान,
क्रूर क्रीडा की नहीं हूँ वस्तु, न हूँ बोझ, न हूँ दान,


यह चेहरा नहीं दिखलाउंगी, यह मेरी कई मुश्किलों का कारण,
कोई इसे तेज़ाब से जलाता है, कोई देता चुम्बन असाधारण,


नहीं, सिर नहीं झुका रखा मैंनें मूर्ख, अभी चिंतन करती हूँ,
जीवन के पहले श्वास के पहले से, संस्कृति से में लड़ती  हूँ...

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