MITRA







मित्रता 

मित्र थोड़ा चलें है, अभी चलना है क़ाफी
मगर संग अगर तेरा है, तो जीवन का मजा है बाकी 


उजाले से अंधेरों में, देख राह बदलती जाती है
पर हाथ में 'तेरा' हाथ है, और प्रयास है, तो बात सुलझती जाती है,


कहने को खान पान का संग है, और भौतिकता का रंग है
पर दिल से दिल के तार हो जुड़ें , तो बिन बोले बातें कितनी हो जाती है 


न तू कभी होए सुदामा, हो तो बनू में पग धोता क़ृष्णा
अगर मार्ग-विहीन होऊ मैं धनंजय, तो प्रिय मित्र, देना गीता की भिक्षा

No comments:

Post a Comment